पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/११५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मेला-ठेला ६९ - कल्लांच खराब खस्तह मुहब्बत के फन्दे मे गिरफ्तार, अपना सब कुछ समर्पण कर उिकरा हाथ में ले दर-दर भीख मांगने लायक हो गये। अब और क्या चाहती हो ? शरम को शहद बनाय चाट बैठे, विना बेहयाई का जासा पहने नाशिम के तन जेन नही, गाढ़े इश्क के आशिक हैं, जुदाई में मल-मल के हाथ रहते हैं। गफसोग जर दिया, जनानी को माल पास न हुआ, नही तो कौना परियों की फौज खड़ी कर श्राप उसके कप्तान बनते। या तो किसो समय भटियाबुर्ज के नवाब थे या इस समय यही देख पड़ते । श्राहा आप हैं -पण्डित अमुक-अमुक-अमुक । पण्डित ॥ नमस्कार । पर दूसरे कौन-चा- कान्त देव-कि महाशय माला बामेऔर यह बावू फलॉ फला- फला। मिस्टर सो ऐएड सो । गुड मानिग मिस्टर जान बुल ! हौ डू यू डू १ और यह सेठ जी । जै गोपाल सेठ जा और यह श्राप हैं ! ओः खो। आप क्या है, वला है, रिस्मा है-तिम्स्मिा है--फिनामिला हैं-आश्चर्य अद्भुत तथा लोकोत्तर वस्तु . सन्दोह हैं | उठती उमर जा जानी जवानी के उफान मे अन्वे न जानिये कितने कंटाप और पादाघात सह तव अनग के अखाडे को पहलवानी प्राप्त की है। गरज कि ऐसे कितने कुढ गो का ढग देख पंच महागज ऊब गये और मन मे दृढ सकल्प कर लिया कि मेले-ले के भी डाँडे न जाना पछ- ताते हुये घर लौट आये। नुन १५