पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/११८

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१०४ . भट्ट-निबन्धावली - ' इससे यही सिद्ध हुआ कि मनुष्य को रसीली बातो में भी रस का श्रास्वाद या अनुभव केवल दशा के परिवर्तन पर निर्भर है । चढ़ती जवानी है; धन की कमा नहीं; ला वो लुटाये तो भी घटने का नहीं; सव भांति स्वच्छन्द निरंकुश ,किसी की दाब नहीं; निहर निःशक हो । श्रामोद-प्रमोद की ओर झुक पड़े। बिलासिता मे अपना औवल दरजा समझने लगे, प्याले पर प्याला उड़ता है, कभी दम भर के लिये भी बाबू साहब शलर से खालो नहीं रहने । अपने शहर की तो कोई चात ही नहीं, देश-विदेश में भी जहाँ तक हुस्नपरस्ती को इद्द है, अपने । भरसक नहीं छोड़ते। एक ता किसी गिननी ही में नहीं, जब तक दो- . चार लोनाई और सौन्दर्य में एकता न मिले, तृप्ति नहीं ! एक साथ । - ऐसा उतारू हुये-कि दो ही चार वर्ष मे निचुड़ पीले प्राम पड़ गये, उधर उमर दल चली, सब भाँति निःसत्व और क्षोण हो गये, गाल चुचक गये, श्रीख की पलकों पर गड्ढे पड़ गये, जिनमें पसर भर चना अमा जाय । रोज खिजाव करते हैं, दिन में चार दफा दवां चाटते हैं, सेरों मोती घोटकर खा गये, पर पहले का-सा रस नहीं आता। जिसके णने को हजार ततबीर और यत्न करते हैं, कुछ कारगर नहीं होती। तेल और पानी से नित्य देह चुपड़ते हैं कि पुराने ठिकरे पर नई क्लई की भांत फिर जवान मालूम हो, पर असली वान नहीं पाती, वरन् फोकापन बढ़ता ही जाता है। असंख्य धन है, राज है, पाट है, सब तरह की हुक्मत चामिल है, . सातखएड का मतमहला राजभवन सा मकान है; किन्तु चिराग बुझ रहा है, इस सत्रका वने वाला पागे काई दीखना नहीं । म सन उपाय कर थक, टोना-टनमन, पूजा-पाठ, जप-तप,गंगा-जनारम, जिसने उपाय बनलाया, कोई न छोड़ रक्या दो-दो, तीन-तानन्याह भी किये कि अब भी कोई एक वंश का अंकुर हो, पर करतार ने कृपान की पुत्र सामुद देखने में न पाया। राज-पाट धन-दौलत सब फीकी