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पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/११९

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२४- इसमें फीकापन कब आता है रसीली वस्तु, रसीली बात, रसीली तबियत मे रस ज्यों का त्यों बना रहता है, किन्तु दशा के परिवर्तन मे वही नीज या वही बात बेमजे या बदनायके हो ऐसी फीकी मालूम होने लागती है कि न जानिये 'पहिले की-सी मिठास कहाँ बिलाय जाती है। बहुधा तो रस के प्रास्वाद मे सुख का अनुभव तभी तक होता है जब तक मन मे किसी तरह का उद्वेग, चिन्ता या उतावली नहीं स्थान पाती । वुद्धिमानों का सिद्धान्त है-यह संसार जो विष का एक वृक्ष है इसमें दो ही फल अमृत के तुल्य फलते हैं-काव्यामृत के रस का आस्वाद और सजनों के , साथ सहवास- "संसारविषवृक्षस्य कैफलेह्यस्मृतोपसे। ___• काव्यामृतरसास्वादः खङ्गतिः सुजनैः सह ।" हम कहते हैं, सजनों के सहवास मे और काव्यामृत में भी रस तभी तक है जब तक चित्त चिन्ताग्रस्त हो खिन्न और उद्विग्न नहीं, हुआ। प्रसिद्ध आशुकवि जिनमे ऐसी ईश्वर की देन पाई गई कि पलक भेजने मे चाहे देर लगे पर उनकी लोकोत्तर प्रतिभा को उत्तम, से उत्तम रसीली कविता गढ़ते देर नहीं लगती, जिनका दिमाग क्या टकसाल घर है । इसी तरह पर विद्वान्, दार्शनिक और मैथमेटिशियन जो दर्शनशास्त्र के अत्यन्त सूक्ष्म और बारीक विचार अथवा मैथमे- टिक्स के कड़े से कड़े सवाल चुटकी बजाते हल कर डालते हैं वे भी • चिन्ताग्रस्त उद्विग्न दशा में ऐसे शिथित पड़ गये और उनकी पैनी बुद्धि । यहाँ तक गोठिल हो गई कि काम पड़ने पर वह प्रतिभा न जानिये किस अन्धे तहखाने में जा छिपी, मानो वास्तम्भ-सा हो गया।