पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/१२७

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परिपक्व बुद्धि या पक्का आदमी उसमें नहीं पाता । किन्तु यदि अपने कहने के अनुसार वैसा आचरण भी करने लगा, तो लोग उसको क्या कहेगे । जब तक खाली बातचीत और जबानी जमाखर्च था तब तक तो लोग बहुत कुछ नहीं समझते थे, पर जव अपने आचरणों मे भो उसने उस उद्योग को उठा लिया तब लोग कहने लगते हैं, "इनको इसमे क्या मतलब था ? इस बात के लिये इतना कष्ट उठाने से इनको लाभ क्या ?" अस्तु । यदि ससार का यही क्रम होता कि लोग प्रश्न ही मात्र से सन्तोष कर लेते हैं तो भी कोई हर्ज न था। खेद का विषय यह है कि लोग उसके बारे मे खाली प्रश्न ही नहीं पूछते, वरन् अपनी एक तरह की राय कायम कर लेते हैं और उसका वहुत-सा धन, ममय तथा शारी- रिक और मानसिक शक्तियों का व्यय होना लोगों के बीच ससार मे सराना नहीं पाता। इसके पहले कि हम आगे बढ़े और एक तीसरी श्रेणी के लोगों के बारे में कुछ लिखें, सामान्य राति पर हमने जिन लोगों का चित्र खीचा है, उस पर विशेष समालोचना लिखना चाहते हैं । और वह यह है कि यह चित्र उन्हें संसार के सर्वसाधारण लोगों से अलग रखने का एक द्वार है, जिसका कारण यह मालूम होता है कि कुछ लोगों मे सूक्ष्मानुसन्धान करनेवाली विवेचनाशक्ति और अनुभव इतर सामान्य लोगों की अपेक्षा अधिक नीक्षण और उत्कृष्ट होता है, जो वात उनमें जो निरे दुनियादार हैं कहीं छू तक नहीं गई, जिसका परिणाम यही होता है कि वे लोग जिनमे सूक्ष्मानुसन्धान गी विवेचना-शक्ति तीखी से तीखी है, ऐरो पुरुष संमार म चट अलग हो जाते हैं और सासारिक लोग भी ऐसे का सिड़ी, सीढाई, बेवकूफ, इन नामों से पुरने लगते हैं । क्यों उन्हें सिही कहते हैं सो भी हम दरसा चुके हैं कि साधारण ' लोग उनके उद्देश्य और महत्व को समझ नहीं सकते इसलिये उनके बारे मे मनमानी राय गढ लेते हैं, जिसके गढ़ने में हर एक पादमी