पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/१४६

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१३२ । भट्ट-निबन्धावली हमारे पढ़ने वालों में से जिन्हें इसमे कुछ प्रतिकूल हुआ हो, माफ़ करें, क्योंकि हम पहले ही लिख पाये हैं कि लोक में रह, लोक-रखना से बचे रहना असंभव है। जल में रह मगर से विरोध कहाँ का न्याय है।' नवम्बर १९००