पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/१५१

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१३५ । । मधुप 'मालूम होता, पर इसके गुप्त चरित्र और काम की ओर जब ध्यान गया तब मधुप बड़े सन्देह में आया कि इसे कौन जाति और किस वर्ण का माने । जो हो उस गुलाब के तो यह बड़े ही काम का था, बल्कि हाथ की करछुली था, जिसके बिना एक क्षण भी उसे कल न पड़ती थी और सब काम बन्द रहता था । नाम इसका पूरन या फुन्नू था। पढ़ा-लिखा एक अक्षर न था, पर चालाकी से सब विषय में टांग अड़ा देता था या वहाँ पढने-लिखने का काम ही कौन था। "लंका निश्चर निकर निवासा। यहाँ कहाँ खजन कर वासा" 'गुलाब को जव कुछ चुहल करना मंजूर होता था तब यह आपस की चपतबाजी, धौल-धक्कड़ हाहा-ठीठी मे विदूषक वन जाता था। , ज्यालू या भोजन के समय बावर्ची या वल्लव का काम देता था। चौसर या गजीफा खेलने मे साक्षात् कंक भट्ट यही वन बैठता था। शाम को हवाखोरी के वक्त कोचवान बन जाता था। कभी-कभी तो सईसी भी निभा देता था। विहार स्थान खिलवत मे घटकबनता था। सच पूछो तो वही इसका मुख्य काम था भी; पूरन क्या यथा नाम तथा गुण सब भौति पूर्ण बहुगुना वर्तन था- "लामो ऐसा नर पीर धावरची बिहिशती खर ।" कहाँ तक पूरन की सिफत लिखी जाय । प्याले पर प्याला जब गर्दिश करने लगता था तब जाम को लबरेज करनेवाला भी यही -होता था। शगल जब ओर-छोर को पहुँता था तब सुर्दे को घसीट खाट पर पटक देनेवाला भी यही होता था। एक दिन अषाढ़ का महीना आधी रात का समय था। शुक्ल पक्ष की सप्तमी या अष्टमी रही होगी। मेह बरस कर निकल गये थे; बीच-बीच दो-चार बूंदें पडती जाती थीं। पर बादल गडगड़ा रहे थे, श्रासमान विलकुल साफ नहीं हो गया था, जिससे बोध होता था कि '