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पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/१५७

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• . पचित्तानुरंजन रहता है। हमारा यह लेख उन्हीं के लिये विशेष रसाञ्जन है। निष्कि- चन जो सामान्य मनुष्य के सामने भी गिड़गिड़ाया करता है, उसको इस रसाजन की क्या अपेक्षा है।। बहुत से ऐसे भी लोग हैं, जिनकी चाल और ढङ्ग कुछ ऐसा होता है कि उसे देख वित्त में विषाद और कुढ़न पैदा होती है। . '- यद्यपि का नो हानिः परकीयां रासभो चरति द्राक्षाम् । , असमंजसमिति मत्वा तथापि नो खिद्यते चेतः ॥ ', किसी दूसरे के दाख के खेत को गदहा चरे लेता है। हमारी यद्यपि इसमें कोई हानि नहीं है किन्तु वह असमंजस सा मालूम होता है कि दाख के खेत को गदहा चरे डालता है, यह समझ चित्त को खेद होता ही है। गर्वापहारी परमेश्वर की कुछ ऐसी महिमा है कि इस तरह के तुच्छ मनुष्यों को काई ऐमा धक्का लग जाता है कि उनकी संव ऐठन विदा हो जाज्ञी है और तब वे राह पर आ जाते हैं। और तब भी जो सीधे रास्ते पर न भाये, उन्हें या तो वेहया कहना चाहिये या समझना चाहिये कि उनका कुछ और अमंगल होनहार है। सोने की नाई चरित्र की परख भी कसे जाने पर होती है । कसने से जो खरा और शुद्ध-चरित्र का निकला वह लोक मे प्रतिष्ठा और कदर के लायक होता है और जो दगीला और खोटा निकल गया वह फिर किसी काम का नहीं रहता। समाज में सब लोग उससे घिन करने 'लगते हैं जो घिन के लायक हैं । उनके जीवन से फल क्या- कुसुमस्तवस्येव द्वयी बृत्तिर्मनस्विनः । मूनिहि सर्व लोकानां विशीर्यंत बनेथवा ॥ ' चरित्रवान् मनस्वी फूलों के गुच्छा समान है। फूल या तो सबों 'के सिर पर चढ़ेगा, नहीं तो जहाँ फूला है, वहीं कुम्हला के पेड़ के नीचे गिर पड़ेगा। कविवर भवभूति ने भी ऐसा ही कहा है-