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पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/२०

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२-कालचक्र का चक्कर

२-कालचक्र का चक्कर सच है "अपना चेता होत नहिं प्रभु चेता तत्काल"-:. "अहन्यहनि भूतानि गच्छन्ति यममन्दिरम् । शेषा जीवितुमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम् । बरावर देख रहे हैं, श्राज यह गये कल उनकी बारी आई परसों. उन्हें चिता पर सुला आये । पर जो बचे हुये हैं उन्होंने यही मन में ठान रक्खा है कि हम अजर, अमर और अविनाशी है सदा स्थायी रहेंगे। यह तो कभी उनके कलुपित चंचल चिच में धसताही नहीं . कि एक दिन आवेगा कि हम भी शव-रूप में ऐसी ही चिता पर सुलाये जायेंगे। न जानिये हजार लाख या करोड़ वर्ष की नेह गाड़े । हुये निश्चिन्त बैठे हैं। निस्सन्देह इससे बढा कर अचरज की बात और क्या होगी? हमारे मन में आता है कि ऐसा ही के लिए कई वर्ष से प्लेग मनुष्य के जीवन को पानी का बुल्ला सा करता मानो । चेतावनी दे रहा है । पर काहे को कोई चेते और क्यों चेते? किसी वात की कमी नहीं रुपयों से खचाखच खजाना भरा है २४ घंटे के दिन-रात में ३६ भांति की उमंग और हौसिले मन में उठते रहते हैं। सच है-- _*दिनमपि रजमी सायं प्रातः शिशिरवसन्तौ पुनरायातः । काल: प्रीति गच्छयायुस्तदपि न मुंधत्याधावायु"॥ चार भाइयों के बीच में एक लड़का है, याप, मा, वाचा, ताऊ, मा. नाना, बड़े लोग सब दिन रात मुंह जोहते रहते है और अपने प्रिय पुत्र को मोहावनी सूरत पर बार-बार पानी पी रहे है अलियों दिन गिनते बीतता है कि कप वह समय यावे कि हम अपने ललन