पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/२८

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भट्ट-निबन्धावली मालूम होती है और जो धीमा क्रम यहाँ के लोगों में देखा जाता है उससे यही निष्कर्ष निकलता है कि इस जीर्ण भारत के भाग्योदय . के लिये अभी कई शताब्दी चाहिये । अस्तु चाहे जो हो, जो हम अब हैं दस वर्ष पहले ऐसे न थे, थोड़े दिन के उपरान्त कुछ और हो. जायगे क्योकि यह संसार कभी एक-सा न रहा। फरवरी १८९२