नीयत बुद्धिमान लोग जिन्हें हर तरह की सोहबत में रहने का मोका मिला है और जो हर तरह की बातों के अनुभव में एक है, सूरत देख . कर या संभाषणमात्र से नीयत को परख लेते हैं । व्यौपार मे केवल नीयत की बरकत रहती है, जिससे सूत का बाँधा हाथी चलता है। हमारे देश की महाजनी मे साख और है क्या ? यही नीयत, जो जरा भी डिगमिगानी कि साख कोसों दूर हटी। हुँडी-पुरजा बन्द कर दिया गया, दीवालिये बैठे-बैठे सिर खुजलाया करें और मक्खी मारते रहें। व्यापार मे जो हम नीयत के चरखे को बार-बार ओटते हैं उसका कारण यही है कि इसमे जैसी जल्दी नीयत फलती है वैसी और किसी काम मे नहीं। बाप, दादा, आदि मूरिसाला. की नीयत यद्यपि श्रोलाद पर उतरती है पर वैसी जल्द नहीं जैसा व्यौपार मे । मनु का वाक्य भी है- "यदि नात्मनि पुग्नेषु नच पौनेषु नप्तृषु । . नवेवं तु कृतोऽधर्मः कतु भवति चान्यथा ॥ जनवरी १८९३ . - -