४ भट्ट-निबन्धावली दैवदुर्विपाक से कोई ऐसी दुर्घटना या पड़ी कि सब डिगमिग हो गया, कहीं कोई शरण देनेवाला न रहा । व्योपारियों मे एक पैसे की मातवरी न रही, बुरे दिन ने अंधड़ के समान सब ओर से आ घेरा, जितना . कारण था सब डिगमिगा गया पर नीयत में डिगमिगाहट न आई, शुद्ध बनी रही; मालमताव जरजेवर जो कुछ पास था सब का निकास कर यह पुरुषसिंह धीरज न छोड़ नीयत का शुद्ध रह उस अंधड़ का मुकाबिला बराबर करता गया, योड़े ही समय में कौड़ी-कौड़ो सवका चुकता कर दिया, वात बनी रही, मुह उजागर रहा- ' "सत्य की बांधी लघमी बहुर मिलैगी प्राय।" इस सिद्धान्त को पुष्ट करते हुये दयालु परमेश्वर ने इसके नीयत की कसौटी के उपरान्त फिर सब बात पहले के समान कर दी। जो उस बिगड़े समय इसकी हवा वरकाते थे, इससे बात करना महापाप समझते थे, वे ही अब आकर खुन्नस बजाने लगे। कवि की इस उक्ति का "नीचर्गच्छत्युपरि च दशा चक्रनेमिक्रमेण" पूरा दृष्टान्त मिल गया। ____ यह अद्भुत बात है कि यद्यपि नीयत एक ऐसी बात है जिसका पता लगना बड़ा कठिन ई पर जिस तरह कस्तूरी की महक छिपाये नहीं छिपती उसो तरह श्रादमी के छिपे से छिपे गुण-अवगुण भी बिना प्रकाश हुये नहीं रह सकते । जिसकी नीयत शुद्ध है उस पर न समाज अंगुश्तनुमाई कर सकता है, न अदालत सख्ती करेगी। इतना ही नहीं वरन् समाज और अदालत दोनों की ओर से उस पर रहम की जाती है। बल्कि प्रदालत में "क्रिमिनल ला" फौजदारी के कानून इस नीक्त ही का बुनियाद पर गढ़े गये है। सख्त से सस्त जुर्म खून के मुकद्दमे में भी बहुधा नीयत ही पर फैसला होता है। किसी की थोड़े में बात यश मिलता है, किसी को बहुत में भी थोड़ा सा । यह तय नीयत ही का पाल है। जिनकी नीयत बुराई करने की होती है उन्, यिना किये ही उसका अयश मिल जाता है।
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