पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/५७

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जबान मर्मवेधी वाक्य को कह मर्म-ताइन न किया होता और दुर्योधन 'काम पाण्डवों से खार न पैदा हुई होती तो परिणाम मे १८ अक्षौहिणी सेना काहे को कट मरती, जिसका धक्का जो हिन्दुस्तान को लगा बल्कि जैसा कारी घाव इसके शरीर मे हो गया, उसकी मरहमपट्टी आज तक न हो सकी। इन्ही सब कारणो से सिद्ध हुआ, मनुष्य अपनी जीभ पर जहाँ तक चौकसी कर सके और उसको दबा सके, दबावै। इस पर चौकसी रखने से अनेक भलाइयाँ हैं और स्वच्छन्द कर देने से सब तरह की बुराइयों की सम्भावना है। ____ जीभ को दबाना और चौकसो रखने से यह प्रयोजन नहीं है कि हम सर्वथा मूकभाव धारण कर लें, किन्तु चुप रहने के भी मौके हैं । विद्यावृद्ध, वयोवृद्ध या संसार की अनेक ऊँची नीची बातों के अनुभव मे जो अपने से अधिक हैं उनके सामने शालीनता के खयाल से चुर रहना होता है जिसमें यह कोई न समझे कि यह छोटे मुंह बड़ी वात कह रहा है। बहुत बकनेवालों में कितने ऐसे हैं कि घंटों तक वक जाते हैं, पर उनके वात करने का खास मतलब क्या था, कुछ समझ में नहीं आता। इस तरह पर बात करनेवालों की कई किस्मे हम यहीं पर गिना सकते हैं। एक वे है कि हंसते जाते हैं, बात करते जाते हैं.-"हस्नुसूखं", "सन्नजल्पे” इत्यादि वाक्य साक्षी हैं कि वात कहने का यह क्रम मूर्खता की पहचान है। एक सखुनतकिया- वाले होते हैं। दस लफ्ज का एक जुमला होगा तो ५ लफ्ज उसमें उनके तकिया-कलाम के होंगे। इनमे जिन्हें गाली की सखुन- तकिया पड़ जाती है उनकी घिनौनी बात कान को महा असह्य मालूम होती है। एक वज्र-भाषी होते हैं। वात उनके मुख से क्या निकली मानो गाज गिरा। ऐसों की आदत होती कि जहाँ कोई बात बनती हो तो ये वहां पहुंच उसे विगाड देने मे कसर न करेंगे। "श्रती रोषो कटुका च वाणी नरस्य चिन्ह नरकागतस्य "