११ उपमा . उपमा एक ऐसा अलंकार है जिसकी उपयोगिता न केवल पढ़े-लिखे लोगों को होती है, वरन् हमारी नित्य की साधारण वात-, चीत में भी बिना उपमा के काम नहीं चलता। उच्चश्रेणी के लोग जिन्हें हम विदग्ध नागरिक या तरवियत याफ्ता कहते हैं उनके बीच तो इस उपमा की वडी-बड़ी बारीकियों निकाली गई हैं किन्तु ग्रामीण और घरेलू बोलचाल मे भी इसका अनुक्षण प्रयोग किया जाता है, जैसा (तौर वेटौना साड़)-(लम्बा जैसा खजूर)-(पतला जैसा बाल ), इत्यादि अँगरेजी में इस प्रकार के कथन को 'सिमिली? कहते हैं और यह माहित्य की पहिली सीढी है। हमारे यहाँ के साहित्य के एक मात्र आधार और साहित्याएंव-कर्णधार विद्वानों ने इस उपमा की कहाँ तक छान की है, अाज हम उसो के संबन्ध में कुछ लिखा चाहते हैं। दण्डी आचार्य का मत है.~ यथाकथचिस्सादृश्यं यत्रोद्भूत प्रतीयते , ___ उपमा नाम सा-किमी के वर्णन में जहाँ वर्णनीय की उत्क- पता और वर्णन में चमत्कार पैदा करने वाला किसी प्रकार का सादृश्य दिखाया जाय वह उपमा है। रस गंगाधर में जगन्नाथ पंडितराज का मत है- सादृश्यं सुन्दर बायसर्थोपरकारकारकं उपमा लौन्दर्य अर्थात् चमत्कृति जिससे वित्त में एक प्रकार का आनन्द विशेष पैदा हो उठे ऐसा जो उपस्कृत वाक्य या अर्थ वह उपमा है। सादृश्य धर्म गुण और क्रिया से लिया जाता है। (इसीच धवलाकोति.)
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