४६ . ' भट्ट-निवन्धावली " . . . है और चन्द्रमा क्षयी अर्थात् घटा-बढ़ा करता है इसके निन्दा के योग्य है और तेरे मुख में पूर्वोक्त कोई दोष न होने से सर्वथा तेरा मुख अनिन्दनीय है । इसे निन्दोपमा कहते हैं। (ब्रह्मणोऽप्युद्भवः पद्मश्चन्द्रः शम्भुशिरोधतः । तौ तुल्यौत्वन्मुखे नेति सा प्रशसोपमोच्यते) पद्म जिससे ब्रह्मा पैदा हुये हैं 'और चन्द्रमा निसको महादेव ने अपने सिर पर धारण किया है सा तेरे मुख के सहश हैं तो तेरे मुख की कहाँ तक प्रशंसा की जाय । इसे प्रशंसोपमा कहते हैं। (शतपत्रंशरच्चन्द्रस्त्वदाननमितित्रय । परस्पर विरोधीति सा विरोधोपमा मता) कमल, शरत् की पूनो का चाँद और तेरा मुख ये तीनों परस्पर एक दूसरे के साथ होड़-करते हुये आपस मे एक दूसरे के विरोधी है-इसे विरोधोपमा कहते हैं। (नजातु शक्तिरिन्दोसते मुखेन प्रतिगर्जितु। कडिनो जवस्येति प्रतिपेधीपमैवसा) कलंकी और जड चन्द्रमा की तेरे मुम्ब के साथ होड़ करने की भला क्या सामर्थ्य है । इसे प्रतिषेधोपमा कहते हैं। .. (आफयं सरोजाहि वधनीयमिदं भुवि । शशाङ्गस्तव वक्रेण पामरैरुपमीयते) हे कमल के समान नेत्रवाली, इस बात को सुन कर कि पामर लोग सब धान बारह पसेरी के हिसाब पर चन्द्रमा को तेरे मुख के नाथ बराबर करते हैं । इससे भी वही पहले कही हुई बातों का मय तात्पर्य है। (न पा मुखमेवेदन भृगौचनुपाइने) यहाँ यह पता नहीं किन्तु ' मुस। यह मृङ्ग नहीं वरन् नेत्र है। सत्य बात को बतला कर संदेह दूर करता है, इसने इसका नाम तत्वाख्यान उरमा है। (कान्या पन्द्रम धाम्ना सूर्य धै। चाणं गजबनुकरोषीति'