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(२)
काल मे भी वे उनसे कितना सीख सकते हैं । हमें विश्वास है, इसनिबन्धावली का हिन्दी के साहित्यिक इसके अनुरूप ही आदर करेंगे।
इंडियन प्रेस, प्रयाग
१६ दिसम्बर १९४१
देवीदत्त शुल्क
(२)
काल मे भी वे उनसे कितना सीख सकते हैं । हमें विश्वास है, इसनिबन्धावली का हिन्दी के साहित्यिक इसके अनुरूप ही आदर करेंगे।
देवीदत्त शुल्क