परिचय इस 'भट्टट-निबन्धवाली' में स्वर्गीय पंडित बालकृष्ण भट्ट के चुने हुए निबन्धों का संग्रह किया है। अतएव यह आवश्यक है कि भट्ट जी यहाँ कुछ परिचय दे दिया जाय । भट्ट जी आधुनिक हिन्दी के जन्ममदाताओं में है। ये भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द के समकालीन उन इने-गिने साहित्यकारों में थे जिन्होंने हिन्दी की सेवा में अपना सब कुछ समर्पित कर दिया था । भट्ट जी अपने समय के संसकृत के बहुत बडे़ विद्दान् थे। संसकृत-साहित्य ,व्याकरण , ज्योतिष, कर्मकाण्ड इत्यादि सभी बिषयों के पूर्ण पंडित थे। वेदान्त,साख्य, पुरान, दर्शन इत्यादि में भी अदभुत गति थी। संसकृत के ऐसे महान पंडित होते हुए भी मातृभाषा हिन्दी की और उनका अनन्य प्रेम था। भट्ट जी हिन्दी में बचपन से ही लिखने लगे थे । स्कूल में हिन्दी में वाद-विवाद और निबन्ध-रचना में सदैव भाग लेते और प्रथम रहते थे। कदाचित् सन् १८७२ ई० के लगभग 'कलिराज की सभा' शीर्षक इनका पहला लेख भारतेन्दु जी की 'कविवचन-सुधा' में छपा था। इसके उपरान्त 'रेल का विकट खेल' 'स्वर्ग में सब्जेक्ट कमेटि' इत्यादि उनके कई लेख 'कविवचन-सुधा' में निकले। उन सभी लेखों की प्रशसा हुई । इसके बाद उनके लेख 'काशी-पत्रिका', 'विहार-बन्धु आदि में भी निकलने लगे। भारतेन्दु जी भट्ट जी की बहुत प्रशंसा किया करते थे और जब कभी प्रयाग आते , उनसे बढे़ प्रेम से मिलते थे। भारतेन्दु जी प्राय: कहा करते थे कि 'हमारे याद हिन्दी में भट्ट जी की ही लेखनी चम-
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