पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/६३

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उपमा सप हेतूपमा मता) - हे गजा, तुम शरीर को कान्ति के कारण चन्द्रमा का, तेज और प्रताप के कारण सूर्य का और गम्भीरता के कारण समुद्र का अनुकरण करते हो । इसे हेतूपमा या कारणोपमा कहते हैं । (वालेवोद्यान मालेयं साल कानन शोभिनी) सालवृक्ष के (कानन) बन से शोभायमान दूसरे पक्ष में अलक सहित (आनन) मुख से शोभायमान यह (उद्यानमाला) वन परम्परा (वाला) स्त्री के समान सोहती है। इसे समानोपमा या सहोपमा कहते हैं। - एक ही उपसा के जहाँ बहुत से उपमान हो वह मालोपमा है, जैसा- (वारिजेनेव सरसी शशिनेव निशीथिनी । यौवनेनेव वनिता नयेन श्री मनोहरा) इस राजा की सम्पत्ति न्याय के कारण ऐसी मन को हरने वाली है जैसा कमल से तलैया, चन्द्रमा के ग्जनी, यौवन में वनिता मन हरती है। निधान गर्भामिव सागराम्बर शमी मिवाभ्यन्तर लोन पावरम् । नदोमिवान्तः सलिलां सरस्वती नृपः ससत्या महिषीसमन्यत ।।इति रौ॥ जैसा (रसना) कर्धनी की कड़ी एक दूसरी के साथ जुटी रहती है वैसा ही एक उपमा दूसरी उपमा के साथ जुट जाने से रसनोपमा होती है। यया- रचन्द्रायते शुधा रचापि सो हंसीयते चारु गतेन कान्ता । कान्ता- यतेस्परा सुखेन पारि वारीयते रवछतयां विहाय) सफेदी ने झलकता हुआ हंस चन्द्रमा का-सा प्रतीत होता है और हंस की-सी चाल चलती हुई कान्ता हंसोन्सी हो रही है। स्पश-सुम्य के कारण जल कान्ता का-सा थाचरण कर रहा है। स्वच्छता गुर से . पाचरण कर २६ है। स्वच्छना गुप मे पासाश जल का-सा विमल