पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/६४

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कोई काम हो उमदी तरह पर कभी नहीं होगा जब तक उस काम में रुचि न हो. । गीता मे भगवान् कृष्णचन्द्र ने कहा भी है- बिना श्रद्धा अर्थात् रुचि के जप, तप, दान, हवन आदि जो किया जाता है, सब व्यर्थ है-करना न करना दोनों एक-सा है न परलोक में उसका कुछ फल मिलता है, न इसी लोक में उस काम की- कोई तारीफ करता है। शास्त्रवालों ने विधिपूर्वक या विधिवत् पर बड़ा जोर दिया है। सच पूछो तो रुचि या श्रद्धा से किसी काम का करना ही विधि है, क्योंकि विधि तभी हो सकती है जब मन में हमारे उस काम की ओर रुचि है। ध्यान जमा कर देखिये तो मनुष्य जन्मते ही रुचि के दखल देने लगता है मानो रुचि उसकी दासी या जर खरीद लौंडी हो, बच्चे को माँ के दूध के एवज गाय या बकरी का दूध शीशी ग रुई के फाहे में दिया जाता है तो वह उसको ऐसी रचि से नहीं - - पीता, जैसा माँ का दूध । ऐसा ही माँ की गोद के बदले उसे पालने या चारपाई पर 'सुला दो तो कदाचित दस में दो एक ऐसे होंगे . जिनको बिना रोये-गाये खुशो में उस पर लेटे रहना रचेगा। फिर ज्यों, ज्यों उमर में वह बढ़ता जाता है, अपने हर एक काम खाना, पीना, मोना. लि. पहिनना, खेल-कूद, पढ़ना-लिखना प्रादि में अन्त्रि को जग, देता जाता है। चिं हो ज जुदे-जुरे प्रकारान्तर या उनकी बारीकियों फेसन के नाम से नल पटे। इस नई भ्यता * जमाने में जिमी हमले नियाद धान-बान होगी है। काम और गलैट मराले मालदार सन्न देशों में जिकी यहो कक उन्नति है कि सुगने, गले में