रुचि . अमीर घरानों की लेडियों के लिये दिन मे तीन वार पेरिस से उनके पोशाक आदि वेश-भूषा का नमूना' आया करता हैं। वैसा ही हम लोग अपने खाने-पीने में रुचि की बारीकियों को बेहद्द बढ़ाये हुये हैं। कोई कहते हैं, हम नहीं जानते लोगों को राटी खाना कैसे पसन्द - आता है, 'हमको तो दोनों जून ताजी-ताजी लुचुई और वेढनो मिलती' जाय तो कभी कच्ची रसोई का नाम न लें। दूसरे कहते हैं, तुम्हारी भी क्या ही रुचि है ? लुचुई सी सकील चीज तुम्हें कैसे रुचती है; अजी कहीं बिना कच्ची रसोई खाये जी भरता है। हमारे हिन्दुस्तान में कच्ची रसोई का तरीका ऐसा वढ़िया रक्खा गया है कि अगर तकल्लुफ" को मौका दिया जाय तो हकीकत मे रसोई रसायन हो जाती है । एक ' तीसरे बोल उठे, यह तो अपनी-अपनी रुचि की बात है। पर मेरी राय तो यह है कि खाना मुसलमान बहुत अच्छा पकाते हैं, खुसूसन गोश्त की किस्मे । इस पर कोई कठीवन्द वहाँ पर बैठे थे, वोल उठे- हरे-हरे, तुम्हारी रुचि कैसी है, हम नहीं कह सकते । हमको तो मास- ' भोजन का नाम सुन मिचलाई आने लगतो है । आपने हमारे । गोपालमन्दिर को खुशबूदार बसोंधो, 'मोहनथाल 'और दूसरे-दूसरे छप्पन प्रकार के भोग का महापसाद मालुम होता है कभा श्रीख से भी नही देखा, नही तो मुसलमानो क भोजन को कभी न राहते। ऐसा हा पेय वस्तु में भी कांच पा टांग अड़ाती है । पोना हम उसे कहेगे जो बिना दातों को सहायता के नेवल जीभ और तालू हो . . हलक के भीतर जाता है; परन्न रस के ज्ञान ने रसना अर्थात् जीम का अधिक सम्बन्ध है तो वहां रुचि का उलाह ला जाती है। पेय पदार्थो. मे सब से पहले पानी है जिसको वैचक वाले या नाहते हैं-शरत् और वसन्त ऋतु को छोड़ और नदीना मे नदी का पानी पीने योग्य है । "पानी पानीय शरदि बसन्ते च पानीयम् । नादेयं नाव्य शरदि वसन्ते च नादेयम्" ।। - nankhaneaminemamatkarsankamadirdamomdanimaa
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