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पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/६८

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१३-लौ लगी रहे .. . लौ लगी रहे तो वाठिन से कठिन और दुष्कर से दुष्कर काम सहज से सहज और सुकर से सुकर है, दुर्लभ सुलभ, असाध्य सुसाध्य हैं। यहाँ तक कि राई का पर्वत और पर्वत का राई हो जाना कोई बड़ी, वात नहीं है, पर जो लौ लगी रहे । किन्तु लौ का लगना ही तो कठिन है । सच्ची लौ लगे तो संसार के तुद्र पदार्थों की प्राप्ति तो कुछ हई नहीं, वरन, इन्द्रियातीत जो देवदूत और फरिश्तों को नहीं मिला, वह अनायास मिल सकता है। सच्ची, लौ लगी तो जिसमें लौ लग जाती है वह जल, थल, जड़, चेतन, आकाश, पाताल सब ठौर सबों में वही-वहीं सूझता है। प्रहलाद और नृसिंह का इतिहास इसका पूरा उदाहरण है। जिसको जिसमें लौ लगती है, • उसको सिवा उश पदार्थ के और मय फीका मालूम होता है, उसे रस केवल उसी में मिलता है। विद्यार्थी को विद्या मे लौ लगी तो एक- एक क्षण भी व्यर्थ बीतते उसे बडा अकरास गुजरता है। इसी से कहा है कि क्षणस्य कुतो विद्या" रुपण को धन जोड़ने में लव • लगी तो एक फूटो झझी भी खग्न करते या किसी को देते बहुत अखता है--- "Re: करणाश्चैव दिशासर्थ च चिन्तयेत् । दि शायरच तो दिया कि घणस्य कुत्तो धनम् ॥" प्रेमी को अपने प्रगपात्र में लोगो तो यह कामी आशिक सन सम-फजीत और हानि सहता, बहन कि मेटा दीवाना बन जाता है। बेशरमी का जामा पहने हुयेगी लगने के नशे में चूर-चूर हामी सो लाड यान तसे काय धा घंटता है। नीचे के शों में लोगों का बहुत अच्न चित्र खींचा गया ~~ .