यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
भट्ट-निबंधावली , . हमारी पुरानी भली बात सभी लुप्त हो गई तत्र नाम ही की क्या बहुधा ये दास और दीन नामवाले नाक 'फुलाय-फुलाय, कहीं नख मे सिख तक भर में जिसमे हिन्दुस्तानी होने की वासना भी न पाई जाय, इँगलीसाइज्ड हो सभ्यता के सिरमौर बनते हैं, पर उनके नाम से प्रगट हो जाता है कि जिस कुल को उन्होने अपने जन्म-ग्रहण से कदर्य कर डाला उस घराने में सभ्यता का कहाँ, तक प्रकाश था । ____ "भूखे पुत्रस्तु पण्डित तृणवन्मन्यते जगत्' इत्यादि नाम के सम्बन्ध में बड़े से बड़ा आल्हा गाने पर भी न चुकेगा। अक्टूबर १६०५