पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/७८

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- । भट्ट-निवन्धावली. , , . में बेशक तरवुद श्री पड़ता है जो हर तरह पर बलन्द समझे गये हैं अकिल मे बलन्द, शाइस्तगी और सभ्यता में बलन्द, ताकत मे बलन्द इत्तिफाक और एका मे वलन्द, तबियतदारी में फैशन की छिलावट मे, ऊँची ईमानदारी मे बलन्द, तब हौसिला भी उनका बलन्द होना ही, चाहिये। जब तक छोटे हाकिम जंट से लेफटिनेण्ट न हों, तृष्णा का अन्त होता ही नहीं। हम लोग रायबहादुर, सी० एस० आई० या राजा कर दिये गये, हौसिला पूरा हो गया । विलाइत के शाही खान- दानवाले जो लार्ड या अर्ल कहलाते हैं उनके ऊँचे हौसिले का अन्त तब तक नहीं होता जब तक प्राइम मिनिस्टर, वजीर-अाजम या कुल सियाह-सुफैद के मालिक महरानी के प्रतिनिधि हिन्दुस्तान के गवर्नर- जेनरल न कर दिये जॉय । हिन्दुस्तानी फौजी अफसर फौज मे सौ-सवा- सौ की कोई नौकरी पा जाने हो से सन्तुष्ट हैं, उनका हौसिला अपनी बलन्दी के छोर को पहुँच जाता है। वही विलाइती फौज के अफसर जब तक कमेडर-इन-चीफ न हों, उनका हौसिला पूरा नहीं होता। । हमारे देश के रुपये गलों के हौसले का अन्त इतने ही में है कि । घर बैठे पाँच अाना चार पाई का व्याज मिलता रहै, डेउढ़ी के बाहर पॉव न रखना पड़े। किसी बड़े कारखाने में रुपया लगा देने से परता फैलाने पर व्याज का घाटा तो सबके पहले है, उपरान्त काम'न चला ता पूजी से भी हाथ धोना पड़ेगा। विलाइत वाले एक लाख की पूंजी से जब तक दस लाख का कोई काम न करें, उनका होमिला तुझता ही नहीं, इंगलैंड, अमरीका, हिन्दुस्तान, चीन सब को एक किये हैं। किसी एक काम मे कुछ थोड़ा-सा नुकसान सहना पड़ा तो दूसरे में एक का बीस गुना कर माला-माल हो गये। कम हिम्मती की निशानी व्याज का घाटा हमारे समान विलायतयाले भी देखते तो इंगलैंड गाज दिन तरक्की के जिस ओर-छोर को पहुंचा हुआ है, कभी न पहुँचता । लक्ष्मी सव ओर से सिमिट-सिमिट जो विलाइत को अपनी वासभूमि