पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/७९

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१५-~-बड़ो के-बड़े हौसिले

हमारे यहाँ के अन्यकारों ने तृष्णा को पिशाची कहा है और निश्चय कर गये है कि इसका अन्त कभी होता ही नहीं, वरन् इसका.अन्त होना ही सुख की सीमा है। हम यह दिखाया चाहते हैं कि यह उनकी मल है, सुख की मीमा चाहे हो या न हो पर तृष्णा का क्षय हो जाता है। रहा इतना कि जो बेचारे हकीर छोटे लोग हैं उनकी.तृष्णा भी बड़ी-छोटी इंचाध इंच की लम्बी-चौडी बात को वात में.बुझ ना सकती है, किन्तु जो बड़े लोग कहलाते हैं उनमे वड़प्पन के अनुसार सभी बात बड़ी होती है । स हि सहता महत्।" तब होसिले के नाम से तृष्णा भी उनकी बहुत बड़ी होनी चाहिये जो थोड़े में कभी बुझती ही नहीं । आसमान के सातवें तह लो बलन्द Fौसिले जहाँ परिन्द भी पर नहीं मार सकते, थोड़े में कब बुझ सस्ते है ? इसी से लोगों ने सिद्धान्त कर लिया है कि तृष्णा का क्षय हई.नहीं। किन्तु यह सिद्वान्त उनका क्या भूल से खाली नहीं है १ विचार गनी कसौटी पर कसने से चित्त इसे स्वीकार नही करना कि तृष्णा का अन्त हुई नहीं। हाँ बड़े और छोटेतो की तृष्णाम फरक अलवत्ता हो हम हिन्दुस्तानियों की छटा दुद्धि, छोटी समझ, छोटी वापियन, छोटी सियत | तहमानी तृष्णा भी नितान्त छोटी दुगा बारे। पर- लित दस बीस की नौकरा पाये मने का तत्य मान और जो नहीं सौ-पास के हेर-मक, स्पेटर, नदीलदार, दिलीश - सदर प्रमगन कर दिये गये तो फिर का भागवानी के पोरबोर को बन गये, मुसका सीता के पार दी गये।, उनकी तु र