पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/८१

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' .. बड़ों के बड़े हौसले . ६५, , कर रही हैं काहे को कभी करती १ वही हमारे यहाँ रोजगारियों के उत्साह का अन्त केवल इतने ही से है कि कलकत्ते का माल बंबई पहुंचा दें और बंबई का दिल्ली-लाहौर मे ढोय के रख दें। इस 'हम्माली के काम मे रुपये पीछे कहीं एक पाई मुनाफा हो गया, , निहाल हो गये-रोजगार की चरम सीमा डॉक गये। ___ हमारे देशों के सुशिक्षितों के उत्साह का अन्त इसी में है कि वेश- भूषा, रहन-सहन, खान-पान मे कहीं पर किसी अंश में हिन्दुस्तानी न मालूम हों। क्या करें १ लाचारी है, चमड़ा गोरा नहीं कर सकते। कोइला से किरानियों के हौसिलों का खातिमा साहब लोगों की लिस्ट में नाम दर्ज हो जाने से है। पादरी साहब के हौसिला का अन्त तब ", हो सकता है कि दुनिया के सब लोग नार्थपोल से सौथपोल तक ईसा को अपना मुक्तिदाता समझने लगें। हमारे ब्राह्मणों की तृष्णा का अन्त इसी में है कि नित्य उन्हें लड्डू और जलेबी पेट भर छकने को मिला करै और सबेरे से साझ तक आध सेर सँधनी सूंघते हुये सॉड़ के । समान डकारते हुये बैठे रहैं । "परानं दुलभ लोके शरीराणि पुनः पुनः" । रेली ब्रदर्स के हौसिले का अन्त तव होगा कि हिन्दुस्तान में एक दाना भी गेहूँ का न रह जाय, सबका सब जहाजों मे लाद विलायत तथा और मुल्कों मे पहुँचाय दे । सैयद साहब के हौसिले का छोर तब

होगा कि बीबी उर्दू कुल हिन्दुस्तान की अदालतों में अपना पंजा
फैला दे और जितने ऊँचे ओहदे हैं सव उनके कौमवालों के लिये

' वतौर अमानत के रख दिये जॉय । दुर्भिक्ष-पीड़ित हमारे किसानों के - उत्साह का अन्त और उनके सुख की सीमा इसी में है कि सर्कार की वाकी न रहने पावे, पेटभर कदन्न खाने को मिलता रहे, किन्तु मेघ- है. राज ने प्रण कर रक्खा है कि हम सो न होने देंगे, जब तुम दिन-रात दाँतों पसीने की मेहनत कर खेती वैयार करोगे तब हम तुम्हें गुड़