पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/९६

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१२ । भट्ट-निबन्धावली है, जिनकी संख्या बहुत कम पाई जाती है । कोई-कोई ऐसे हैं जो इस असिधारा-चत के व्रती पाये जाते हैं। नहीं तो नई जवानी के श्रारंभ मे जैसा एक स्वाभाविक गहन अविवेकान्धकार बुद्धि में लाया रस्ता है वह ऐसा नहीं है कि जिसे साधारण चिराग की क्या तास्त वरन् बिजली की रोशनी भी हटा सके । इधर तरुणाई की तरल तरङ्ग,. उधर जो नहीं खाने-पीने की आशा इस के सिवाय बहुत-सा धन पास हुआ और बेरोक-टोक खुद मुख्तार मालिक उस वड़ी दौलत के हुये तब फिर क्या कहना १ 'एक तो तितलौकी दूजे चढ़ी नीम ॥ ऐसी . दशा में उनके दारुण लक्ष्मीमद की चिवित्सा और दर्पटाहज्वर की गरमी का शिशिरोपचार शाति कष्ट साध्य है। उनके ऐश्वर्य-तिमिर-जनित अन्धत्व के दूर करने को बग्ली मे भी अब तक ऐसा कोई सुरमा न ईजाद किया गया। चढ़ती उमर के जोश में बुद्धिवर्द्धक शास्त्रों के द्वारा मांजने से भी लब तब इसका नशा दूर नहीं होता, बुद्धि की स्वाभाविक मलिनता नहीं जाती। गदहपचीसी को जहाँ इमने डॉका और बाल पकने लगे कि पक्कापन उसमें आप से आप पा जाता है। सुफेढ़ी से चमकते . हुये बाल मानो गवाही देने लगते हैं कि बुद्धि के भांजने से जो चमक आई है वह अब तक छिपी रही है. प्रायो, म उसकी चमक माकर देखो। । हमने ऊपर लिग्बा है, कोई-कोई ऐसे हैं जो बनती उमर में भी अमिधारा व्रत के ममान चरित्र-पालन में भावधान रह चदती उार के रवामाविक दोष ने प्रचते रहते हैं। उनके गुण-गौरव के प्रकाश का अवसर यही ढलती उमर का बाल पकनेवाला समय होता है जिसपी दमन-शक्ति की दमक और बदनातुरी की चमक श्रद चौगुनी बन जाती है। पल है ऐन लोग जो इस नई उमर की चौरसी ने पार हो गुग्ग-गाभार्य के अगाध सागर येन योगे में लिये