पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/१०३

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कष्टात्कष्टतरतुधा चार भाइयो मे एक के भी सिंह-शावक सा पुत्र जन्मै तो उसी से वे चारों पुत्रवान् हैं। सच तो है मुर्दादिल, सब भाँत गये बीते, निरे निकम्मे, गीदड़ की सी प्रकृति वाले, अब इस समय हम लोगों की औलाद बढ के क्या होगी? सियार के कभी सिह पैदा हो सर्वथा असम्भव है। इनका अधिक बढना केवल ऊपर का वाक्य कष्टात्कष्टतरं- क्षुधा को पुष्ट करने के लिये है। देश में क्षुधा का क्लेश जो दिन दिन बढ़ रहा है उसमे सामयिक शासन-प्रणाली की भांत-भांत की कड़ाई के अतिरिक्त एक यह भी है कि वाल्य-विवाह आदि अनेक कुरीतियों की बदौलत हम लोगों की निकम्मी सृष्टि अत्यन्त बढती जाती है जिनमें सिंह के छौनों का सा पुरुषार्थ कहीं छू नहीं गया। पूर्व मचित सव शत-छिद्र-घट में पानी के समान निकला जाता है देश में पुरुषार्थ के अभाव से नया धन पाता नहीं; परिणाम जिसका भूख का क्लेश बढाने के सिवाय और क्या हो सकता है ? धन इस तरह क्षीण होता जाता है धरती की शक्ति अल्प हो जाने से पैदावरी औसत से उतनी नहीं होती जितनी आबादी मुल्क की बढ़ रही है। एक साल किमी एक प्रान्त में भी अवर्पण हुआ तो उसका असर देश भर में छा जाता है। माना पहले की अपेक्षा धरती अब बहुत अधिक जोती बोई जाती है किन्तु उत्पादिका-शक्ति कम होने से खेती की अधिकाई का कोई विशेष लाभ न रहा। अस्तु, सो भी सही यहाँ की पेदावार यहीं रहती बाहर के दूर देशों मे न जाती तब भी सस्ती रहती अन्न का कष्ट न उठाना पडता । सो भी नहीं है देश में धन श्राने का कोई दूसरा द्वारा न रहा सिवाय पृथ्वी की उपज के वह उपज बाहर न जाय तो बड़े बड़े फर्म और महाजनों की कोठियों में भी जहाँ लास और क्रोड की गिनती है एक पैठा न दिखलाई दे। क्ल- कत्ता और बम्बई ऐसे दो एक शहरों को छोड़ देश भर में बड़े बड़े गंज़गारी जिनके पर रुपयों की झनझनाहट छाई रहती थी उदासी छाई हुई है जिनके चलते काम में किसी को पानी पीने की फुरसत नहीं