पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/११२

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भट्ट निबन्धावली 'डालियों के द्वारा होता है। हम अपना भोजन मुख के द्वारा कर शरीर में पोषक द्रव्य पहुंचाते हैं वृक्षों का वही काम जड़ या मूल के द्वारा होता है। इसी से ये पादप हैं क्योंकि पाद अर्थात् नीचे से अपना पोषक द्रव्य जल को खींचते हैं और ऊपरी भाग से डालियों और पत्तियां तथा फूलों से जो उनके शरीर मे मल के स्थान में है उसे 'फेकते हैं; यह काम वे रात मे विशेष किया करते हैं। बहुत से फूल और पत्तियाँ हैं जिन की सुगन्धि या दुर्गन्धि दिन में इतना स्पष्ट नहीं मालूम होती जितना रात मे। गुलशब्बू के किस्म के फूलों की, सुगन्धि रात में अधिक हो जाती है; बुद्धिमानों ने इसी से इसका नाम रजनी गन्धा रख दिया है। डाक्टर लोग रात मे बगीचों में वृक्ष के नीचे रहना या सोना मना करते हैं। इसलिये कि वृक्ष अपने शरीर के विषैले पदार्थों को फेका करते हैं; घाम, छाह, शीत, उष्ण, जाड़ा, गरमी आदि का सुख दुःख जैसा हम अनुभव करते हैं वैसा ही ये वृक्ष भी। आदमियों में जैसा शीतल देश के निवासी उष्ण देश में नहीं जी सकते वैसा ही इन वृक्षो में देखा जाता है। हम लोगों के देह में जैसा रस, लहू, मास मेदा. हड्डी आदि सात धातु हैं वैसा ही इन वृक्षों के भी रस (जूस ) गूदा आदि हैं । जैसा हम लोगों को बाल वृद्ध तरुनाई का विकास या जुदे जुदे कारणों से उनमें घाट या बाढ़ होता है वैसा ही इन वृक्षों मे भी। तात्पर्य यह कि हमारी और इन वनस्पतियों की एक एक वात पूरी तरह पर मिलती है। बहुधा वृक्षों में भी ऐसे हैं कि जिनमें काट-छाँट न की जाय तो वनैले हो जाते हैं वैसा ही जैसा भनुष्य समाज में न रहे और सभ्यता की बाते उसे न सिखाई जाय तो गवार या बनला हो जाता है । सीधा या टेढ़ा आदि में जिस उठान से वृक्ष उठता है बड़ा होने पर वह वैसा ही बना रहता है बल्कि उस प्रकार की उठान उसकी और दृढ़ हो जाती है। श्रादमियों में भी हम ऐसे ही देखते हैं कदाचित् इसी बुनियाद पर यह कहावत चल पड़ी है:- Finararatी' k-