पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/११८

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२२० भट्ट निबन्धावली " 'पर भी नही हो सकती। सिवा इनके बड़े-बड़े अमीरों को नाचना गाना सिखलाने वाले उस्ताद, चाल मे उमदा वर्ताव सिखलाने वाले उस्ताद, मेमों से उमदी तरह सहूलियत के साथ हाथ मिलाना सिखलाने वाले उस्ताद अनगिनती पड़े हैं। आपको शायद ऐसे लोगों के सिखलाने पढ़ाने का मोज भी सुनने की इच्छा होगी, प्रायः तो दो गिनी फी घंटा निख है और बड़ी आसानी से मिलने से इसका दूना चौगुना हो -सकता है। शायद आप कहें ऐसे लोगों मे मनुष्य के सर्वोत्कृष्ट गुण अर्थात् उत्तम उत्तम विषयों के सोचने की शक्ति तो बहुत खूबी के साथ नहीं 'पाई जाती अंगरेजी में मनुष्य के लिये जो शब्द "मैन" है क्या उसके माने सोचने वाले के नहीं हैं ? इसका उत्तर हम येही दे सकते हैं कि मनुष्य मात्र के लिये सभव नहीं है कि सभी "मनन शील" हों। फिर केवल यही बात नहीं है कि मनुष्य खेल ही कूद या दूसरी सहूलियत और आराम देने वाली बातों मे नई चीज़ की खोज मे लगा है; किन्तु जो बड़े बड़े गूढ और सूक्ष्म विषय हैं उनके सोचने वाले भी नित्य नये रास्ते निकालते ही जाते हैं। श्राज आदमी के पैदाइश की थिोरी” निकली, कल चन्द्र लोक मे किस प्रकार की वस्ती है या हई नहीं; परसों सूर्य मंडल किस पदार्थ का बना है यह सोचा जाता है; अथवा पदार्थ की चतुर्थ अवस्था दर असल कोई वस्तु है या दार्शनिकों का खयाली पुलाव है; या बुद्धिमानों ने अटकल पच्चू पदार्थ की एक दशा का नाम रख दिया है; ऐसी ऐसी · नित्य एक से एक अचंभे की नई नई बातें सुनने में बरावर आती जाती हैं। इस लिये यदि कोई यह कह दे कि आज विज्ञान या मनुष्य की कोई विद्या अपने हद्द को पहुंच गई तो यह बड़ी भूल होगी। हम तो कुछ ऐण सोचते हैं कि मनुष्य का जन्म ही नई नई चीजों के खोजने के लिये हुया है; इसी से यह सिद्धान्त बड़ा पका मालूम होता है कि "दुनिया रोज़ रोज़ तरको पाती जाती है। और जो बातें