भट्ट निबन्धावली पर फाइने वाले सिंह पर कौन प्रेम करेगा ? बोध मनुष्य-मात्र मे होता है परन्तु युक्ति-सिद्ध बोध उपकारी है और युक्ति-विरुद्ध बोध सवा अपकारी होने के अतिरिक्त उपकारी हो ही नहीं सकता। अभिलापिता पाणिगृहीती युवती पर प्रेम अनिष्टकारी नहीं है क्योंकि दाम्पत्य-प्रेम भावी सुख का प्रधान कारण है। किसी अन्य स्त्री पर प्रेम करना अनिष्टकारी है इसलिये युक्ति-विरुद्ध कहलावेगा। सदैव भयभीत रहना अपकारी है किन्तु किसी किसी समय भयभीत हाना उपकारी भी होता है । क्रोध महा अनिष्टकारी है किन्तु सयम से क्रोध भी उपकारी होता है। महाभारत का वाक्य है- "तस्मानारसृजेत्तेजो न च नित्यंमृदुभवेत् । काले काले तु सप्राप्तीब्रोपि वा भवेत् ॥" वैदिक समय के लोग यहाँ बोध के बड़े अनुयायी थे जो वस्तु उन्हे सुन्दर ओर तेजोमय देख पड़ी उसपर बहुत कुछ दत्त-चित्त हो जाते थे उसके सौन्दर्य से आकर्पित हो जैसा सूर्य चन्द्रमा उपा विद्युत् प्रादि को ईश्वर की बड़ी भारी शक्तिमान देवताश्री में गिना । कारण इसका यही है कि वे कोमल और सरल चित्त थे अब के लोगों के समान बाँके तिरछे और मन के मैले न थे। उस समय डाह और ईर्ष्या का बहुत कम प्रचार था जैसा अब है वैसा तब न था कि कोई किसी का ऐश्वर्थ नहीं देख सकता। प्रजा को किसी तरह की पीड़ा का नाम भी न था। पैदावारी का छठवां हिस्सा केवल राजा को देते थे अब इस समय सब मिल तृती- याश सम्पूर्ण उपज का राजा निगल लेता है चतुर्थाश में भी जो बच रहता है समय-समय दुर्भिक्ष श्रादि दैवी उपद्रव के कारण सुख और स्वास्थ्य प्रज्न के लिये दुर्लभ है। पुराने ऋषि मुनि अपने बोध और मनोयोग के उपरात जो विचारते ये उममे द्वेष-बुद्धि और पक्षपात का दखल नहीं होने पाता था इसी लिये वे ग्रास कहलाये और उनके विचार या खयाल सर्वया सत्य होते ये मिथ्या का कहीं उसमें लेश भी न था। बहुत मे यूरोप त्रएट निवासी साधारण शान ।कॉमन-
पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/१४
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