het og बोध मनोयोग और युक्ति सेन्स) के पक्षपाती हैं वे कहते हैं; किसी वस्तु के विचार में बहुत-सा तर्क-वितर्क व्यर्थ है केवल साधारण जान के द्वारा कार्य करना चाहिये। उन लोगों का यह भी मत है कि साधारण शान बिना विचार के उत्पन्न होता है अर्थात् ऐसा ज्ञान मन का एक स्वाभाविक धर्म है। हमारे देश में उसे साधारण ज्ञान न कह, समझना, जी मे बैठना, मालूम पड़ना इत्यादि शब्दों का प्रयोग उसके लिये करते हैं । साधारण ज्ञान सदा सत्य नहीं होता कितने ऐसे विषय हैं जिनकी युक्ति साधारण ज्ञान के भीतर नही आती और जिसका विचार करने को हमारा साधारण जान समर्थ भी नही है । बहुधा द्वेष-बुद्धि ईर्ष्या इत्यादि के कारण मिथ्या होती है इसलिये जिसे समझना कहेंगे उसमे प्राधा साधारण जान रहता है और बाधा द्वेष आदि के कारण मिथ्या बोध है । उत्कृष्ट बोध, साधारण ज्ञान और सर्वोत्कृष्ट युक्ति तीनो से उनका समझना रहित होता है । भारत के कुदिन तभी से आये जब से लोगों मे ऐसी समझ का प्रचार हुआ । वेद के समय जब ब्राह्मणो का यहाँ पूरा आधिपत्य रहा ऊपर लिखी हुई तीनों वाते उत्कृष्ट बोध, साधारण ज्ञान, सर्वोत्कृष्ट युक्ति, अच्छी तरह प्रचलित थी, अब केवल समझ शेष रही। शेप मे अब हम यह कहा चाहते हैं कि युक्ति और उत्कृष्ट बोध दोनों की चेष्टा हम करना चाहिए विना वोध (फीलिंग) कोई साधारण कार्य भी नहीं सिद्ध हो सकता और बिना युक्ति के सत्य-विचार मन में नहीं आ सकता इसलिये अपनी उन्नति चाहने वाले को दोनों का मनो- वाक् काय से सटा सेवन करना चाहिये । परन्तु पहले युक्ति द्वारा सिद्ध कर ले कि यह काम उपकारी हे तब अपनी अभिरुचि प्रकाश करें। धीरे-धीरे उस काम के करने में एक प्रकार का बोध पैदा हो जायगा तब उसके करने में उत्साह बढेगा। इसी बोध के बढ़ने से स्वाधीनता प्रिय लूयर ने केथोलिकों के अत्याचार से समस्त यूरोप को चचा रक्ता और गशिंगटन ने अमेरिका का स्वच्छन्द कर दिया ।
पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/१५
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