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पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/१९

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आत्मत्याग कौम के बनाने का किया जायगा उसका उलटा ही फल होगा । जब कभी हमारे सुदिन आवेगे आत्मत्याग आत्मगौरव' आत्मनिर्भर आदि श्रेष्ठगुण सभी यहाँ आय बसेरा करने लगेगे। यह आत्मत्याग के अभाव का बाइस है जिससे हम अपने लोगो' में किसी का विलाइत जाना पसन्द नही करते । आत्मत्याग मन मे जगह किये हो तो कभी सम्भव है कि हम वहाँ के आमोद-प्रमोद मे फंस विगड़ कर वहां से लौटे और वहाँ से आय अपने देशी भाइयों को जानवर समझ उन से घिन करने लगे। सच तो यो है कि यदि आत्म त्याग के सिद्धान्त पर हम दृढ हो तो विलायत जाने की आवश्यकता ही क्या रहै ? "पथ्ये सति गतार्तस्य किमौषधि निषेवणैः । पथ्येऽसति गतार्तस्य किमौषधि निषेवणैः॥ पथ्य से रहने वाले रोगी को दवा के सेवन से क्या ? पथ्य से न रहने वाले रोगी को दवा से क्या ? जो कौम हम पर इस समय हुकूमत कर रही है उससे हम किस बात मे हेठे हे बुद्धि, विद्या, उद्यम, व्यवसाय अध्यवसाय, योग्यता, कमता क्या हम मे नही है ? बल्कि काम पड़ने पर हर एक बातो मे सबक़त ले गये और उन्हे अपने नीचे कर दिया। एक अात्मत्याग की ऐसी भारी कसर लगी चली आ रही है कि जिससे हमारे यावत् अच्छे-अच्छे गुण सब फीके मालूम होते हैं । जैचन्द और पृथ्वीराज आपस मे लड़ न जानिये किस कुसाइत से इसकी जड़ उखाड़ कर फेक दिया कि यह बिरवा फिर यहाँ न पनपा । स्नेह, मैत्री, वात्सल्य, श्रद्धा, अनुराग की पुण्यमयी प्रतिमा आत्मत्याग के पूजने वाले वे ही भाग्यवान् नर हैं जिन पर दयालु परमात्मा की कृपा है । भाग्यहीन भारत उस सौम्यमूर्ति के पूजन मे रुचि और श्रद्धा न रख सब गुन आगर होकर भी दुःख सागर मे डूबता हुआ निस्तार नही पाता। हमारे 'पूर्वजों ने चार वर्ण की प्रथा इसी आत्मत्याग के मूल पर चलाया था- दया,