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पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/४०

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भट्ट निबन्धावली मिला के दस हिस्से हुनर के हैं वे इन सवों के योग से पृथ्वी भर को अपने काबू मे ला सकते है । ससार मे इन्हीं का नाम चलता पुरजा है हम ऐसे गोबर गनेस बोदे लोगों का किया क्या हो सकता है जो निरे अपटु दस-पाच श्रादनियो को भी अपनी मूठी में नहीं ला सकते । इसी से हम पहले अक में लिख पाये ह कि हा हम ऐसे हताश क्यो जन्मे ? प्रयोजन यह कि जिसने झूठ सच बोल दूसरों को धोखा है रुपया कमाना अच्छी तरह सीखा है वही सफल जन्मा है । सभ्य समाज के मुखिया हमारे बाबू लोगो में सफल जीवन का सूत्र माहव बनना हे जब तक कहीं पर किसी अश में भी हम हिन्दुस्तानी हैं इसकी याद बनी रहेगी तब तक उनके सफल जीवन की त्रुटि दूर होने वाली नही । इससे वे सब-सब स्वाग लाते हैं क्या कर लाचार ह अपना चमड़ा गोरा नही कर सकते । अस्तु, ये कई एक नमूने सफल जीवन के दिखलाये इन सबों में सफल जीवन किसी का भी नहीं है वरन सफल जीवन उसी पुरुष श्रेष्ठ का कहा जायगा जिसने अपने देश तथा अपने देश बान्धव के लिये कुछ कर दिखाया है जो अात्म सुख रत न ही खुदगरजी से दूर हटा है: इस तरह के उदार भाव का उन्मूलन हुये यहाँ बहुत दिन हुये। नई शिक्षा प्रणाली नये सिरे से हम लोगों में पुनः उसका वीजारोपण सामयिक शासकों के नमूने पर किया चाहती है। कदाचित् कभी को यह वीज उगै फवकै और उसमें देशानुराग का अमृत फल फले और कोई ऐने सुझती भाग्यवान् पुरुष देश में पैदा हो जो सुधात्यन्दी उसके पीयून रस का स्वाद चखने का सौभाग्य प्राप्त करें पर हम तो अपने हृतक जीवन में उसके स्वादु ने वचित ही रहेंगे। मार्च १६०५