पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/४१

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- 8-कर्तव्य परायणता बड़े बड़े उत्कृष्ट गुण जिन से मनुष्य समाज में माननीय होता है जिनके अभाव से सब ठौर निरादर पाता और हेठा समझा जाता है- उनमे कर्तव्य परायणता का होना गुण सापान की पहिली सीढी है। पहिली सीढी इसलिये इसे कहते हैं कि जब यही मालूम नही है कि हमे क्या करना उचित है और जिसके करने की निम्मेदारी हम पर है त्रुटि या चूक होने से उसका हिसाब अन्तरात्मा को हमे देना होगा तब स विद्वान् बड़े धर्मनिष्ट भी हुये तो क्या ? कर्तव्य परायणता के कई एक अवान्तर भेद हम यहां नहीं लेते जिसमे जुटी-जुदी जाति के लोगो मे अलग-अलग मतभेद हैं। कितनी बाते ऐसी हैं जिन्हे हम हिन्दुस्तान के रहने वाले कर्तव्य मानते हैं पर इङ्गलैड तथा योरोप के और और देश फ्रान्स जरमनी इत्यादि के लोग उसे अवश्य कर्तव्य न समझेगे । जैसा पुत्र के लिये बाप माँ की सेवा और अपनी सब कमाई उनके अर्पण करना या अपने छोटे तथा असमर्थ भाइयो और कुटुम्ब को पालना पोखना यहाँ हिन्दुस्तान मे एक कर्तव्य कर्म है और न करने पर निन्दा है वैसा यूरोप के इङ्गलैंड फ्रान्स आदि देशो ने नहीं । अगरेज़ो मे वाप मॉ की कुछ विशेष खवर न ले सर्वस्व अपनी मेम साहबा को सौप देना महा कर्तव्य परायणता है। यहाँ ऐसा करने ते समाज मे निन्दा है। यहाँ कुलवती स्त्रियो के लिये बात-चीत और सलाप एक ओर रहे, घुघुट के अोट से भी किसी पर पुरुप को देखना निन्दनीय है वरन सूर्य चन्द्रमा भी उन्हे न देख पावै यहाँ नक असूर्यपश्या होना कर्तव्य परायणता हे जैसा किसा कवि ने कहा है- "पढन्यासो गेहाहिरहिफणारोपणसमो। निजावासादन्यद्भवमपरद्वीपगमनम् ॥ भ०नि०-३