पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/४३

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कर्तव्य परायणता ४३ यूरोप देश निवासियो को इसमे कुछ भी कर्तव्य परायणता नहीं समझी गई। यहॉ लौ सभ्यता जोर किये हुये है कि किसी की मेम साहबा को कोई बग्घी पर चढाये दिन भर घूमते और सैल सपाटा करते रहे कोई क्षति नही। अस्तु, इस तरह की एक एक जाति की अलग अलग कर्तव्य परायणता को जुदे-जुदे देशो की जुदी जुदी रिवाज और अपने अपने समाज के भिन्न-भिन्न क्रम या दस्तूर मान हम उसे कर्तव्य परायणता न कहेंगे बल्कि कर्तव्य परायणता उसे कहेगे कि जिसके न करने में प्रत्यवाय अथवा प्रायश्चित है जैसा ब्राह्मण के लिए सूर्योदय के समय सन्ध्योपासना कर्तव्य कर्म है और उसके न करने मे प्रत्यवाय है। कर्तव्य पर ध्यान और समय का उचित अनुवर्तन (पक्चुअलटी) दोनों का साथ है। सच पूछो तो हम इन दोनो से च्युत हो गये हैं जो अपने समय को ठीक रखना या पालन करना जानता है अपने वख्त को बेजा न खोता वही कर्तव्य परायण भी भरपूर रह सकता है और ये दोनो इस समय हमारे शासनकर्ता में अच्छी तरह पाये जाते हैं। जब हम इन्हे अपना शिक्षा गुरु अनेक सामयिक सभ्यता की बातो मे मान रहे हैं और उन्हे अपना गुरुर्गुरु समझ उनका अनुकरण कर रहे हैं तो इन दोनो में भी उनके अनुयायी क्यों नही ? किन्तु यह भी कुछ देश के भाग्य ही कहेगे कि यहाँ के लोग बुराई का अनुकरण पहले और बहुत जल्द करने लगते हैं भलाई का भुलाय उस ओर कभी झुकते ही नहीं। जित जेता का अनुकरण करते हैं यह प्राकृतिक नियम की भांति हो रहा है और यह कुछ यही नहीं वरन् सब देश और सब जाति के लोगो में देखा गया है। जब से मुसलमान यहाँ के जेता हुए उस समय से हम उनकी चाल ढाल नशिस्त बरखास्त के कायदे न केवल उनकी अरवी फारसी तथा उर्दू भाषा वरन् दीन इसलाम को अब तक अपनियाते आये आर्य से अर्द्ध यवन हो गये; यहाँ लौ कि मुसलमानो को अपना एक अग बना