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भट्ट निबन्धावली भक्ति, देश भक्ति आदि भक्तियों के अनेक भेद हैं । दैव का कुछ ऐसा कोप है कि इस अन्तिम भक्ति देश की भक्ति का काल यहाँ बहुत दिनों से छा रहा है। इन सब प्रकार की भक्तियों में हमारी ऊपर लिखी भक्ति की अवतरणिका सबो के साथ पढने वाले लगा सकते हैं । इस भक्ति के प्रकरण में एक नये तन की भक्ति और भी है जिससे हमारे बहुत से पढने वाले पूर्ण परिचित होंगे इससे उसका लक्षण या उसके विशेष वर्णन की बहुत आवश्यकता नही मालूम होती और उसका नाम भार्या भक्ति है-मन बच कर्म सर्वतोभावेन अ गिनी मे दास्य भाव इसका सारांश है । माता पिता कुनबा गोत सब से मुह मोड़ अनन्य भाव से पत्नी देवी की आराधना ही इस महाव्रत का माफल्य है। फल जिसका किसी कवि ने यों लिखा है- व्यापारान्तरमुत्सृज्य बीक्षमाणो वधूमुखम् । या गृहेष्वेव निद्वाति दरिद्राति स दुमतिः ॥