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पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/५१

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१२-सुख क्या है ? सुख के सम्बन्ध में आधुनिक वेदान्तियो का तो सिद्धान्त ही निराला है जिन्होने व्यास कृत प्राचीन वेदान्त दर्शन के जो कुछ उत्तम सिद्धान्त थे कि सुख दुख मे एकसा रहना सुख मे फूल न उठना दुख मे घबड़ाय नहीं सो न कर छिपे नास्तिक ये बेढान्ती अब मानते हैं कि सुख दुख पाप पुण्य बुरा भला दोनो एक हैं और दोनो बड़े बन्धन हैं । पाप पुण्य दोनो शरीर करता है आत्मा शुद्ध और निर्लेप है, इत्यादि । खैर वेदान्तियों के ये कच्चे सिद्धान्तो को अलग रख हम यहाँ पर आज विचार किया चाहते हैं कि सुख क्या है ? लोग कहते हैं इने पर भगवान की कृपा है ये बड़े सुखी हैं । पर इसका कोई ठीक निश्चय अब तक न हुआ कि सुख क्या वस्तु है जिसके लिये संसार भर ललचा रहा है। कोई बड़े परवारी और बढे हुये कुनबे को सुख की सीमा मानते हैं । कच्चे-बच्चे लडके बालों से घर भरा हो एक इधर रोता है दूसरा उधर पडा चिल्ला रहा है सब अोर किच-पिच गुल-शोर मच रहा है एक बाबा की डाढी खसोटता है दूसरा कान मीजता है तीसरा गोद में चढा बैठा है चौथा सामने पड़ा मचला रहा है बाबा बेवकूफ मनीमन फुटेहरा से मगन होते जाते हैं और अपने बराबर भाग्यमान और धन्य किसी को नहीं मानते। कोई-कोई इसी को बड़ा सुख मानते हैं कि अनगिन्ती रुपया पास हो उलट पुलट बार-बार उसे गिना करें न खायें न खरचै साँप बने बैठे-बैठे ताकते रहैं। जैसे हो तैसे जमा जुड़ती रहै बात जाय पत जाय लोक मे निन्दा हो कोई कितना ही भला बुरा कहे पर गांठ का पैसा न जाय । तुम उसके रुपये या फाइदे मे खलल अन्देज़ न हुये हो चाहो तुम्हारा सा बदकार कबख्त अपाहिज दूसरा दुनिया के परदे मे न पैदा हुआ हो तुम उसके लिये सिर की 1