पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/८२

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४ भट्ट निबन्धावली होता है, जैसा शीतकाल का अवसान । पूस माघ के जाड़ों में ठिठरे' हुओं को फागुन के सुहावने दिन कैसे भले मालूम होते हैं। ऐसा ही जेठ मास की तपन के उपरान्त जब बरसात आती है और वर्षा के उपरान्त शरद । जाड़ा गरमी बरसात इन तीनों की मध्य अवस्था या 'प्रौढत्व किसी को नहीं रुचता आदि और अवसान सभी चाहते हैं। किसी उत्सव या तिहवार का आगमन या मध्य भाग बड़े खुशी का होता है अन्त नहीं। अँगरेज़ी राज्य का आदि बड़े सुख का रहा प्रौढ़ता सब तरह दुखदायी हो रही है। सुहृद सरल चित्त मित्र के समागम का आदि और मध्य बड़ा सुखदायी है अन्त या बिछोहा शोक बढ़ाता है। गीता में भगवान् ने उत्तम उसी को ठहराया है जो आदि मध्य अवसान तीनों में सुखद हो, जिसका आदि और मध्य तो अच्छा हो पर परिणाम मे दुख मिले वह राजसी और तामसी है। आदि मध्य अवसान तीनों में जो एक से रहते हैं विमल शानियों मे वही है। आदि और मध्य चाहे जैसा रहा अन्त बना तो सब बना कहा जाता है। जून, १९०६