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पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/९

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१-ज्ञान और भक्ति , ज्ञान और भक्ति दोनों परस्पर प्रतिकूल अर्थ के द्योतक मालूम होते हैं; ज्ञान के अर्थ हैं जानना या जानकारी और ज्ञ धातु से बना है। भक्ति भज धातु से बनी है जिसके अर्थ हैं सेवा करना या लगाना (टू सर्व बार टू डिवोट)। मनुष्य मे जानकारी स्वच्छन्द या सर्वोपरिर हने के लिये प्रेरणा करती है, जा अज्ञ या अवोधोपहत हैं वे ही दूसरे के अाधीन या मातहत रहना पसन्द करते हैं। एक या दो मनुष्यो की कौन कहे समस्त जाति की जाति या देश का देश के साथ यह पूर्वोक्क सूत्र लगाया जा सकता है। अमरिका मे ईस्ट इडियन्स और आफ्रिका के काफिर अथवा काले-कुरूप हब्शी क्यों गुलाम बना लिये गये और यूरोप की सभ्य जाति ने सहज मे उन्हें जीत अपने वशम्बट तथा प्राधीन बना लिया ? इस लिये कि इन हन्शियों मे तथा ईस्टइण्डियन्स मे शान तथा बुद्धि-तत्व की कमी थी जो सर्वथा अज्ञ और अवोधोपहत होते हैं । ज्ञान आध्यात्मिक उन्नति (स्पिरिचुअल प्रोग्रेस। का मुख्य द्वार है । नेशन में "नेशनालिटी" जातीयता और आध्यात्मिक उन्नति (स्पिरिचुत्रालिटी) दोनो साथ-साथ चलती हैं अर्थात् कोई कौम जब तक अपनी पूरी तरक्की पर रहती है तब तक रूहानी तरक्की का घाटा या अभाव उसमें नहीं पाया जाता। भारत में वैदिक समय प्राध्यात्मिक उन्नति का मानों एक उदाहरण था, ज्यों-ज्यों उसमे अन्तर पड़ता गया भारत भारत दशा मे पाय बराबर नीचे को गिरता गया। उपरान्त पुराणा की सृष्टि ने लोगों में बुद्धि का पैनापन न देख भक्ति को उठाय खड़ी किया इसलिये कि लोग ब्रह्मचर्य के ह्रास से बुद्धि की तीक्ष्णता खो बैठे थे उतने कुशाग्र-बुद्धि के न रहे कि आध्यात्मिक बातों को भली-भांति समझ सके । भक्ति ऐसी