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पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/११२

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(९२)
[शृंगार-
भामिनीविलासः।

उसको धारण करनेवाली करंगनयनी (नायिका) का, चिरकाल अपराध के स्मरण होने से (उत्पन्न हुआ) महान रोष, शीघ्रही नष्ट हुआ (नायिक के विनीत वचनों को सुन और उसे निज चरण पलोटते देख नायिका का मान शांत हुआ यह भाव)

राज्ञो मत्प्रतिकूलान्मे महद्भयमुपस्थितम्। बाले
वारय पांथस्य वासदानविधानतः॥६७॥

हे बाले! राजाके प्रतिकूल होनेके कारण मुझ पथिकके उपस्थित होनेवाले महान भयको, (अपने) गृह में वासस्थान का दान देकर, निवारण कर ('राज' शब्द द्व्यर्थिक है) क्योंकि 'राज' चंद्रमाको भी कहते हैं; चन्द्र, विरहीजनों को दुखद होता है इससे इस श्लोक में यह भाव निकलता है कि अपने घर में मुझे स्थान दे मेरी कामव्यथाको शांत कर; कारण, चंद्रमा सहन होनेकी यही एकमात्र औषधि है)

मलयानिलमनलीयति माणिभवने काननीयति
क्षणतः। विरहेण विकलहृदया निर्जलमीना-
यते महिला॥६८॥

विरह (वेदना) से विकलहृदयवाली कामिनी, मलयाचल संबंधिनी पवनको अनल और मणिमय भवनको वन मान, जलविहीनमीनके समान आचरण करती है।

कालागुरुद्रवं सा हालाहलवद्विजानती नित-