सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/१२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
विलासः२]
(१०१)
भाषाटीकासहितः।

कहती है (इस देह का निर्माणकर्ता कोई दूसराही है; ब्रह्मा में इतनी शक्ति कहा कि ऐसी सुंदर रचना करसकै यह भाव)

व्यत्यस्तं लपति क्षणं क्षणमहो मौनं समालंबते
सर्वस्मिन्विदधाति किं च विषये दृष्टिं निरालं-
बनाम्॥ श्वासं दीर्घमुरीकरोति न मनागंगेषु
धत्ते धृतिं वैदेहीविरहव्यथाविकलितो हा हंत
लंकेश्वरः॥८४॥

वैदेहीके विरहजनित व्यथा से व्याकुल हुआ लंकेश्वर, क्षणमें विपरीत (बातें) कहता है; क्षणमें मौन रहता है; (क्षणमें) सर्व (संसारिक) विषयोंको शून्याकार दृष्टिसे देखता है, (क्षणमें) दीर्घश्वास लेता है; (और क्षणमें) किंचितमात्र भी अंगमें धैर्य धारण नहीं करता; हाय यह क्याही कष्ट है!

उदितं मंडलमिंदो रुदितं सद्यो वियोगिवर्गे
ण। मुदितं च सकलललनाचूडामणिशासनेन
मदनेन॥८५॥

चंद्रमंडल उदित हुआ; विरहीवर्ग तत्काल रोये और समस्तकामिनीजनौंका श्रेष्ठ शासन करनेवाला मन्मथ आनन्दित हुआ (सायंकाल वर्णन है, एकही साथ तीन भाव उत्पन्न होने से 'समुच्चय' अलंकार हुआ)

प्रादुर्भवति पयोदे कज्जलमलिनं बभूव नभः।