पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/१२३

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विलासः२]
(१०३)
भाषाटीकासहितः।

नन्दन्त्यमन्दमरविन्दधिया मिलिन्दाः॥
किं चासिताक्षि मृगलांछनसम्भ्रमेण
चंचूपुटं चटुलयन्ति चिरं चकोराः॥८९॥

हे सुंदरि तेरे मन्दहासयुक्तमुख को अवलोकन कर अरविन्दबुद्धि से (अर्थात् उसे अरविन्द जान, आसमंताद्भागमें) चमर बहुशः गुंजार करते हैं, और हे कृष्णनयने! मृगलांछन [चन्द्रमा] के नमसे (उसी मुखचंद्र पर) चकोरपक्षी चिरकाल पर्यंत चोंच को चंचल करते हैं। (चलाना चाहते हैं यह भाव)

स्मितं नैतत् किन्तु प्रकृतिरमणीयं विकसितं
मुखं ब्रूते को वा कुसुममिदमुद्यत्परिमलम्।
स्तनद्वन्दं मिथ्या कनकनिभमेतत् फलयुगं
लता सेयं रम्या भ्रमरकुलनम्या न रमणी॥९॥

यह मुसुकानि नहीं है, किंतु स्वभाव सौन्दर्यता का विकास है; इसे मुख कौन कहता है? यह सुगंधमय पुष्प है; ये स्तनद्वय नहीं है, सुवर्णवर्ण दो फल हैं, यह भमर समूह से नम्र की गई मनोहर लता है, रमणी नहीं (स्वधर्म को गोपन कर अन्यधर्मका आरोप करनेसे 'शुद्धापन्हुति' अलंकार हुआ)

संग्रामांगणसंमुखाहतकियाद्विश्वंभराधीश्वर-
व्यादीर्णीकृतमध्यभागविवरोन्मीलनभोनीलिमा॥
अंगारप्रखरैः करैः कवलयन्नेतन्महीमंडलं,मार्तंडोऽ-