पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/१३९

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विलासः२]
(११९)
भाषाटीकासहितः।

आनम्य वल्गुवचनैर्विनिवारितेऽपिरोषात् प्रयातुमुदिते मयि दूरदेशम्।
बाला करांगुलिनिदेशवशंवदेन क्रीडाबिड़ालशिशुनाऽऽशु रुरोध मार्गम्॥१३६॥

नम्र और कोमल वचनों से निवारण किये जाने पै भी क्रोधवशात् दूरदेश को प्रयाण करने के लिए मुझ उद्यत होनेवाले का मार्ग, बाला ने, हस्त की अंगुली की आज्ञा से वश किएगए, विनोदी बिडाल शावक [खेलके हेतु पाले हुए बिल्ली के बच्चे] से रोका। (विदेशगमनवेलामें बिडालका मार्ग काटना अशुभसूचक होता है )

अभूदप्रत्यूहः कुसुमशरकोदंडमहिमा विलीनो लोकानां सह नयनतापोऽपि तिमिरैः।
तवाऽस्मिन् पीयूषं किरति परितस्तन्वि वदने कुतो हेतोः श्वेतो विधुरयमुदेति प्रतिदिनम्॥१३७॥

हे कृशाङ्गि! इस तेरे मुख में मन्मथ के धनुष का प्रताप निर्विघ्न (उदित) हुआ, (और ऐसा होने से) अंधकार के साथ मनुष्यों का नयनताप भी नष्ट हुआ; (तो भला) सर्व ओर अमृत बरसाते हुए यह श्वेत[१] चंद्रमा प्रतिदिन फिर क्यों उदित होता है? (मुख में चंद्रमा का आक्षेप करके उसको निष्फल ठहराया जब तक चंद्रोदय नहीं होता तब तक


  1. चंद्रमा क्षयी होने के कारण श्वेत शब्द से वर्णकी पांडरता सूचित की।