पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/१४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(१२०)
[शृंगार-
भामिनीविलासः।


अंधकार रहता है, उसके उदय होने से सर्व ओर प्रकाश फैल जाता है, और मनुष्यों को उसकी शीतल किरणों से सुख होता है-स्त्री जब तक युवा नहीं होती तब तक उसका मुख मलीन-मलीन क्या तिमिराच्छादित सा रहता है, शरीर में मदनसंचार होने से वही मुख परम प्रकाशमान हो जाता है, और देखनेवालों को आनंद देता है, इस प्रकार चंद्र और का मिनी के मुख की तुलना उपरोक्त श्लोकमें की है। इसमें 'आक्षेप' और 'सहोक्ति' अलंकार का संकर है)

विनैव शस्त्रं हृदयानि यूनां विवेकभाजामपि दारयंत्यः।
अनल्पमायामयवल्गुलीला जयंति नीलाब्जदलायताक्ष्याः॥१३८॥

विवेकी युवा पुरपोंके भी हृदयको विना शस्त्रके विदारण करनेवाली, महामनोहरमायावीलीलावाली कमलदललोचनी (कामिनी) जय पावैं! (शस्त्ररूपी कारणके विना हृदय विदारणरूपी कारज होनेसे 'विभावना' अलंकार हुआ) (१)

यदवधि विलासभवनं यौवनमुदियाय चंद्रवदनायाः।
दहनं विनैव तदवधि यूनां हृदयानि दह्यंते॥१३९॥

चंद्रवदनी (कामिनी) का विलासस्थानरूपी यौवन जब तक नहीं उदित हुआ तबतक अग्निके बिना ही तरुण पुरषों के हृदय दग्ध होने लगे (यह भी 'विभावना' अलंकार हुआ)