पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/१४३

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विलासः२]
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भाषाटीकासहितः।


हैं; जब अधिकारियों को उन वस्तुओं के याचने में जिन पै उनका सत्व है यह दशा होती है तो साधारण याचकों को लघुत्व मिलना यथार्थ ही है। इसमें 'अर्थान्तरन्यास' अलंकार है)

जलकुंभमुंभितरसं सपदि सरस्याः समानयंत्यास्ते।
तटकुंजगूढसुरतं भगवानेको मनोभवो वेद॥१४४॥

जलपूरित जलघट सरोवर से सवेग लानेवाली तेरी, तट के कुंज में गुप्त रति को एक भगवान मनोभाव [कामदेव] ही जानते हैं (गुप्त रति करनेवाली नायिका के प्रति सखी की उक्ति है। सुरत में भी कंप, निःश्वास इत्यादिक होते हैं और वेगसे चलनेमें भी, इस कारण उपरोक्त नायिका की यह दशा इन दो में से किस कारण से हुई यह स्पष्ट न होने से 'मीलित' अलंकार हुआ)

त्वमिव पथिकः प्रियो मे विटपिस्तोमेषु गमयति क्लेशान्।
किमितोऽन्यत् कुशलं मे संप्रति यत्पांथ जीवामि॥१४५॥

किसी पथिकसे कुशलप्रश्न पूछिगई कोई 'प्रोषितपतिका नायिका उत्तर देती है:-हे पांथ [पथिक!] तेरे समान मेरा पथिक प्रियतम वृक्षसमूहों में क्लेश पाता है; इस कालमें इससे अन्यत् मेरी क्या कुशल है जिससे मैं जीवित रहूं?