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पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/१६९

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विलासः३]
(१४९)
भाषाटीकासहितः।

रीतिं गिराममृतवृष्टिकरीं तदीयां तां चाकृति कविवरैरभिनंदनीयाम्।
लोकोत्तरामथ कृतिं करुणारसार्द्गां स्तोतुं न कस्य समुदेति मनः प्रसादः॥१९॥

इति श्रीमत्पंडितराजजगन्नाथविरचिते भामिनीविलासे करुणा नाम तृतीयो विलासः॥३॥

अमृत वृष्टि करनेवाली उसकी वाणीकी रीतिका, कविवरोंसे अभिनंदित उसकी आकृतिका, करुणारसाई उसकी परमोत्तम कृतिका स्तवन करनेको किसका चित्त नहीं आनंदित होता?

भामिनी विलासके करुणा नाम तृतीय विलासका प्राकृत भाषानुवाद समाप्त हुआ।

अथ भामिनीविलासे।

चतुर्थः शांतोविलासः।

विशालविषयाटवीवलयलग्नदावानलप्रसृत्वरशिखावलीविकलितं मदीयं मनः।
अमंदमिलदिदिरे निखिलमाधुरीमंदिरे मुकुंदमुखचंदिरे चिरमिदं चकोरायताम्[]॥१॥

विशाल विषयरूपी वनमंडलमें लगेहुए दावनलकी प्रसार


  1. 'पृथ्वी' छंद है।