पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/१७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भूमिका । पंडितराजकृत ग्रंथों में 'भामिनीविलास के विषय विशेष कहने आवश्यकता नहीं क्योंकि उसमें क्या वस्तु है और वह कहां आदरणीय है इसका विवेचन वाचक स्वयं करलेंगे । यह ताविक शृंगार, करुणा और शांत नामक चार विलासोंमें विभक्त प्रत्येक पद्य अपना अर्थ अलग अलग देता है; एकसे दूसरा भी संबंध नहीं रखता । यही कारण है कि इस ग्रंथकी प्रतियां लती नहीं; किसीमें कुछ न्यून है किसीमें' कुछ अधिक । एकने क श्लोक मिला दिया दूसरेने दूसरा निकाल लिया । यह ग्रंथ संगानुसार कये गहे पद्योंका संग्रह है । कोई कोई कहते हैं कि पंडितराजने अपनी स्त्रीके नामानुसार इसका नामकरण किया; गोई यह अनुमान करते हैं कि ' निर्माय नूतनमुदाहरणानिरूपं, स नियमके प्रतिपालनार्थ ' रसगंगगाधर' में उपयुक्त होनेके हेतु सकी प्रथमहींसे रचना की गईथी। वस्तुतः यह प्रतिष्ठित ग्रंथ जग- थरायके अनुपम काव्यचमत्कारका अत्युत्कृष्ट नमूना है। २२ मेरे जान भामिनीविलासका अभीतक कोई देवनागरी भाषांतर. प्रकाश नहीं हुआ । होवै कैसे, हमारे माननीय चकों की संस्कृतकाव्य में अत्यंत रुचि है न!बड़े बड़े उपाधि- री आंग्लभाषाभास्कर एतद्देशीय विद्वानों को तो 'शेक्सपियर । रेनालु', 'मेकाले । से ही अवकाश नहीं मिलता; फिर विचारे गन्नाथपंडित' को कौन पूछ ? बताइए ग्रंथ लिखने तथा प्रकाश करने का उत्तेजन कैसे होवे ? हां, जो पुस्तक शिक्षा विभाग के . डाइरेकर महोदयने पाठशालाओंमें प्रचलित कर दी उनकी मात्र . अहोभाग्य समझना चाहिये; नहीं तो किसी ने चाहै कितनेहीं परिश्रम से कैसाही उत्तम ग्रंथ रचा और मुद्रणमेचाहे कितनाहिं द्रव्य व्यय किया हो, बहुधा उसकी प्रतियां या तो यंत्रालय में पडे पडे इमि भक्ष्य हो जावेगी या वणिविक्रयालय में उपयोगी होंगी॥ व ऐसी दशा देखकर भी जानबूझ ग्रंथलेखन तथा प्रकाशन क्रिया