पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/४९

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विलासः१]
(२९)
भाषाटीकासहितः।

बात है! (विजय किये हुए देश को छिन्न भिन्न करने के अनंतर शूल से शेष रही वह नगरी जिसमें सज्जनों का वासथा और जहां धर्म होता था उसके भी नष्ट करने पै कटि बांधने वाले दुराचारी राजा का वृत्तांत है)

स्वर्लोकस्य शिखामणिः सुरतरुग्रामस्य धामाद्भुतं
पौलोमीपुरुहूतयोः परिणतिः पुण्यावलीनामसि॥
सत्यं नन्दन किन्त्विदं सत्हृदयनित्यं विधिःप्रार्थ्यते।
त्वत्तः खांडवरंगतांडवनटो दूरेऽस्तु वैश्वानरः॥२७॥

हे नन्दनवन! तू सुरलोक का शिखामणी है, देवद्रुमों के उत्पन्न होने का एक अद्भुत स्थान है; इन्द्र और इन्द्राणी की परमोत्तम पुण्य का परिणाम [फल] है, यह सब सत्य है परंतु हम ईश्वर से नित्य यही प्रार्थना करते हैं कि खांडववनरूपी रंगभूमि में नृत्य करनेवाला नटरूपी अमि तुझ से सदैव दूर रहै (कोई सत्पुरुष किसी धार्मिकश्रेष्ठ का वर्णन करके यह प्रार्थना करता है कि दुष्टजन तुझे क्लेशकारी न होवैं)

स्वस्वव्यापृतिमग्नमानसतया मत्तो निवृत्ते जने।
चंचूकोटिविपाटिताररपुटो यास्याम्यहं पञ्जरात्॥
एवं कीरवरे मनोरथमयं पीयूषमास्वादय।
त्यन्तः सम्प्रविवेश वारणकराकारः फणिग्रामणीः५८

जब मनुष्य अपने अपने कार्य में मग्न होकर मुझ से दूर