तनिक भी शंका न करने वाले वृक्षोंका जीवन सुफल है; मेरा नहीं, क्यों कि मेरी दशा उनकी दशासे विपरीत है)
शून्येऽपि च गुणवत्तामातन्वानः स्वकीयगुणजालैः।
विवराणि मुद्रयन् द्रागर्णायुरिव सुजनो जयति॥९०॥
अपने गुणगणों से मूखौं (के हृदय) में भी गुणज्ञता को स्थापन करनेवाले और (उनके) छिद्रौं को शीघ्रही छिपानेवाले मकरी के समान सज्जन पुरुष (संसार में) जय पावै-('पूर्णोपमा' है-मकरी की उपमा यहां बहुत ठीक दी है। सज्जन अपने गुणों से मूर्खों के शून्य हृदय को आच्छादन करते हैं, मकरी अपने तंतुओं (गुणौं) से शून्य स्थल को आवृत करती है; सज्जन दोषों के दुराने में प्रवीण होते हैं, मकरी छिद्रौं के)
खलः सज्जनकापासपक्षणैकहुताशनः॥
परदुःखाग्निशमने मारुतः केन वर्ण्यताम्॥९१॥
(संसार में) दुष्ट मनुष्य, सज्जनरूपी कपास को दग्ध करने के लिये अनल और परदुःखरूपी अग्निको (प्रचंड करने के लिए) पवन (के समान) हैं; (इनका) कौन वर्णन कर सकता है? (इसमें खलौं और सज्जनोंका समान रूपक कहा इससे 'अभेद रूपक' अलंकार हुआ)
परगुह्मगुप्तिनिपुणं गुणमयमखिलैः समीहितं