पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/७३

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विलासः१]
(५६)
भाषाटीकासहितः।

न होने सै महान पराक्रमी पुरुषों को भी, चाहै वे जैसा उद्योग करें, यश नहीं मिलता)

गर्जितमाकर्ण्य मनागङ्के मातुर्निशार्द्धजातोऽपि।
हरिशिशुरुत्पतितुं द्रागङ्गान्याकुञ्च्ये लीयते निभृतम्॥१०६॥

(मेघ अथवा हस्ती अथवा अपर किसी बली वनपशु की) गर्जना को श्रवण कर अर्द्ध रात्रिमें उत्पन्न हुआ सिंहकिशोर माता के गोदमें कुछ ऊपर उछल और शीघ्रही सवागौं को आकुंचित कर वही का वहीं लीन होगया अर्थात् अधिक शक्ति न होने के कारण और कुछ न कर सका (तेजस्वी पुरुषोंका प्रकार विलक्षण होता है। सिंह सर्वदा गजके ऊपर आक्रमण करनेमें तत्पर रहता है परंतु इसमें स्वप्रकारकी विशेषता वर्णन को इससे 'संबंधातिशयोक्ति' अलंकार हुआ)

किमहं वदामि खल दिव्यतमं गुणपक्षपातमभितो भवतः।
गुणशालिनो निखिलसाधुजनान् यदहर्निशं न खलु विस्मरसि[१]॥१०७॥

हे खल! तू, गुणज्ञ सर्व सज्जन पुरुषों को निशि दिन (मे कमी भी) नहीं विस्मरण करता इससे मैं तेरे जगविख्यात दिव्यतम [परम श्रेष्ठ] गुणपक्षपात के विषय में क्या कहूं?


  1. 'प्रमिताक्षरा' छंद है।