पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/८१

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विलासः१]
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भाषाटीकासहितः।


के समान आदिमें कटु होते हैं जैसे भेषज खाने के अनंतर गुण जान पड़ता है उसी प्रकार सुजनों के कटु शब्द आगे महामंगलकारी होते हैं यह भाव इस आर्या में 'पूर्णोपमा' अलंकार है। 'पूर्णोपमा' में उपमान, उपमेय, वाचक और धर्म चारों स्पष्ट रीति से दृश्य होते हैं।

व्यागुंजन्मधुकरपुंजमंजुगीतान्याकर्ण्य श्रुतिमदजाल्लयातिरेकात्।
आभूमीतलनतकंधराणि मन्येऽरण्येऽस्मिन्नवनिरुहां कुटुंबकानि[१]॥१२४॥

मेरी जान मधुकरों के झुंड के गुंजाररूपी मंजुल गीत सुन गानमें मनके लीन होजाने से इस वन के विवश वृक्ष समूहों के कंधे [शाखैं] पृथ्वी तक झुक आई हैं अर्थात् उनकी डालियां भूमि पै लग गई हैं (पत्र, फल अथवा पुष्प के भार से नम्र होने वाले वृक्षोंके उपर उत्प्रेक्षा की है-जहां कुछ तर्क किया जाता है वहां 'उत्प्रेक्षालंकार' होता है-यहां वृक्षों के झुकने का हेतु मरों के गान का सुनना कहा इससे 'हेतूत्प्रेक्षा' अलंकार हुआ)

मृतस्य लिप्ता कृपणस्य दित्सा विमार्गगायाश्च रुचिः स्वकांते।
सर्पस्य शांतिः कुटिलस्य मैत्री विधातृ सृष्टौ न हि दृष्टपूर्व्वा[२]॥१२५॥

मृतक का पुनरपि जीवन, कृपण का दातृत्व, व्यभिचारिणी स्त्रीकी निज पतिमें प्रीति, सर्प की शांति और कुटिल


  1. 'प्रहर्षिणी' छंद है।
  2. 'उपेन्द्रवज्रा' छंद।